________________
२३२. प्रश्न : निरन्तर बँधने वाली प्रकृतियाँ कौन हैं ? उत्तर : ध्रुव बन्धी ४७ प्रकृतियाँ (५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण,
५ अन्तराय, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्मण, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और ४ वर्णादि) तीर्थकर, आहारक युगल और ४ आयु ये ५४ प्रकृतियाँ निरन्तर बँधती हैं। जो प्रकृतियाँ जघन्य से भी अन्तर्मुहूर्त काल तक निरन्तर रूप से बँधती हैं वे निरन्तर बन्धी
कहलाती हैं। २३३. प्रश्न : सान्तर बन्धी प्रकृतियाँ कौन हैं ? उत्तर : नरक गति, नरक गत्यानुपूर्वी, एकेन्द्रियादि चार जाति,
समचतुरन संस्थान को छोड़कर ५ संस्थान, वर्षभ नाराच संहनन को छोड़कर ५ संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, . आतप, उद्योत, स्थावर आदि १० असाता वेदनीय, नपुंसक वेद, स्त्री वेद, अरति और शोक ये ३४ प्रकृतियाँ सान्तरबन्धी हैं, अर्थात् कभी किसी प्रकृति और कभी किसी अन्य प्रकृति का बन्ध होता है। एक समय बँधकर द्वितीय समय में जिनका बन्ध विश्रान्त हो जाता है अथवा अनियम से दो आदि समय तक बन्ध होता है वे सान्तर बन्धी प्रकृतियाँ हैं।