________________
२३४. प्रश्न : सान्तर-निरन्तर बँधने वाली प्रकृतियों कौन हैं ? उत्तर : देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, ‘मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी,
तिमंचगति, तिर्यः कापूधः औदारिक शरीर, औदारिक शरीरांगोपांग, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक शरीरांगोपांग, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रर्षमनाराच संहनन, प्रशस्त विहायोगति, परघातयुगल, पञ्चेन्द्रिय जाति, सादि १०', सातावेदनीय, हास्य, रति, पुरुषवेद और गोत्र युगल ये ३२ प्रकृतियाँ विरोधी के रहते हुए सांतर बँधती हैं और विरोधी की व्युच्छित्ति हो जाने पर निरन्तर बँधती हैं। अर्थात् ये
उभयबन्धी हैं। २३५. प्रश्न : भागहार किसे कहते है तथा उसके कितने भेद
उत्तर : संसारी जीवों के जिन परिणामों के निमित्त से जो शुभ
अशुभ कर्म संक्रमण करें-अन्य रूप परिणमन करे उसे भागहार कहते हैं। इसके ५ भेद हैं- उद्वेलन संक्रमण, विध्यात संक्रमण, अधः प्रवृत्त संक्रमण, गुण संक्रमण और सर्वसंक्रमण।
१. प्रसादि दस अर्थात् त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय तथा यश-कीर्ति।
(६७)