Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 99
________________ पंचमाधिकार: २२६. प्रश्न : उदय व्युच्छित्ति के पश्चात् बन्धव्युच्छित्ति किन प्रकृतियों की होती है ? उत्तर : देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिक-शरीर, वैक्रियिक शरी रांगोपांग, आहारक युगल अयशस्कीर्ति और देवायु, इन ८ प्रकृतियों की बन्ध व्युच्छित्ति उदय के पश्चात् व्युच्छित्ति होती है। २२७. प्रश्न : किन प्रकृतियों की बन्ध थुच्छिति और उदय व्युच्छित्ति साथ साथ होती है ? उत्तर : मिथ्यात्व, आताप, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, संज्वलन लोभ के बिना १५ कषाय, भय, . जुगुप्सा, हास्य, रति, एकेन्द्रियादि चार जाति और पुरुष वेद, इन ३१ प्रकृतियों की बन्धव्युच्छित्ति और उदयव्युच्छित्ति साथ ही होती है, अर्थात् जिस गुणस्थान में बन्ध व्यच्छित्ति होती है उसी गुणास्थान में उदय व्युच्छित्ति हो जाती है। २२८. प्रश्न : उदय व्युच्छित्ति के पहले बन्ध व्युच्छित्ति किन प्रकृतियों की होती है ? उत्तर : उपर्युक्त प्रकृतियों के सिवाय ८१ प्रकृतियों की बन्ध (६४)

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