Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 95
________________ तथा उसमें किसी. प्रकृति का क्षय भी नहीं होता। २१६. प्रश्न : बारहथें गुणस्थान में नष्ट होने वाली सोलह प्रकृतियाँ कौन हैं ? उत्तर : बारहवें गुणस्थान के उपान्त्य समय में निद्रा और प्रचला का तथा अन्त समय में ज्ञानावरण की ५, दर्शनावरण की . चार और अन्तराय की पाँच इस तरह १४ का सब मिलाकर १६ प्रकृतियों का क्षय होता है। २२०. प्रश्न : अयोग केवली गुणस्थान में क्षय होने वाली ६५ प्रकृतियाँ कौन हैं ? उत्तर : पाँच शरीर से लेकर स्पर्श नामकर्म तक ५० स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुस्वर, दुःस्वर, देवगति, देव गत्यानुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, निर्माण, अयशस्कीर्ति, अनादेय, प्रत्येक, अपर्याप्त, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, वेदनीय की साता-असातावेदनीय में से अनुदय रूप एक और नीच गोत्र ये ७३ प्रकृतियाँ उपान्त्य समय में तथा वेदनीय की एक, मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, सुभग, बस, बादर, पर्याप्ति, आदेय, यशस्कीर्ति, तीर्थकर प्रकृति, मनुष्यायु और उच्चगोत्र, ये बारह प्रकृतियाँ अन्त समय में भय को प्राप्त होती हैं। (६०)

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