Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 61
________________ शरारांगोपाग, समचतुरनसंस्थान, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक शरीरांगोपांग, वर्णादि चार, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, त्रस, बादर, पर्याप्ति, प्रत्येक शरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर और आदेय, इन तीस की तथा अन्त के सप्तम भाग में हास्य, रति, भय और जुगुप्सा इन चार की; सब मिलाकर अष्टम् गुणस्थान में छत्तीस प्रकृतियों की बन्ध व्युच्छित्ति होती है। १६२. प्रश्न : नवम्-अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में व्युच्छिन्न होने वाली ५ प्रकृतियाँ कौन हैं? उत्तर : अनिवृत्तिकरण के पाँच भागों में क्रम से पुरुष वेद, संचलन क्रोथ, मान, माया और लोभ इन पाँच प्रकृतितों की बन्ध व्युच्छित्ति होती है। १६३. प्रश्न : दशम्-सूक्ष्म सांपराय गुणस्थान में व्युच्छिन्न होने याली १६ प्रकृतियों कौन है? उत्तर : ज्ञानावरण की ५, अन्तराय की ५, दर्शनावरण की चार-चक्षुर्दर्शनावरण, अचक्षुर्दर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवल दर्शनावरण, उच्च गोत्र और यशस्कीर्ति इन सोलह प्रकृतियों की बन्ध व्युच्छित्ति दशम् गुणस्थान के अन्त में होती है।

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