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हैं उनका अनुभाग नीम, कांजीर, विष और हलाहल के समान होता है। तात्पर्य यह है कि पुण्य पाप के असंख्यात लोक प्रमाण अवान्तर भेद हैं। अनुभाग के अनुसार ही जीव के सुख दुःख में हीनाधिकता होती है। जैसे देवगति और देवायु रूप पुण्य प्रकृति के समान होने पर भी अभियोग्य जाति के देव को वाहन बनना पड़ता है जिससे वह संक्लेश का अनुभव करता है और उस पर बैठने वाला सुख का अनुभव करता है ।
१७७ प्रश्न: प्रदेश बन्ध में समय प्रबद्ध का स्वरूप और परिमाण कितना है ?
उत्तर : पाँच रस, पाँच वर्ण, दो गन्ध तथा शीत-उष्ण, स्निग्ध रूक्ष इन चार स्पर्शो से सहित कार्मण वर्गणा का जो पिण्ड एक समय में बँधता है उसका प्रमाण सिद्धों के अनन्तवें भाग एवं अभव्यराशि से अनन्तागुणा होता है।' यही समयप्रबद्ध कहलाता है ।
१७८ प्रश्न समय प्रबद्ध का ज्ञानावरणादि कर्मों में विभाग कौन करता है और किस अनुपात से होता है ?
१- अर्थात् यह संख्या इतनी है कि अभव्यों से अनन्तगुणी होती हुई भी सिद्धों के अनन्त भाग प्रमाण ही है।
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