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तथा संक्लेशरूप परिणामों से शुभ कर्मों में कम और
अशुभ कर्मों में अधिक अनुभाग पड़ता है। १७५. प्रश्न : धातिया कर्मों का अनुमाग किस प्रकार होता ।
उत्तर : धातिया कर्मों के अनुभाग को आचार्यों ने लता (बेल), '
दारु (काष्ठ), अस्थि (हड्डी) और शैल (पाषाण ) के दृष्टांत द्वारा स्पष्ट किया है अर्थात् जिस प्रकार लता, दारु, हड्डी और पाषाण में आगे आगे कठोरता बढ़ती जाती है उसी प्रकार कर्म प्रकृतियों के अनुभाग-फल देने की शक्ति में कठोरता बढ़ती जाती है। उपर्युक्त दृष्टान्तों में लता और दारु के अनन्तवें भाग तक के स्पर्धक देशघाति रूप होते हैं और दारु के शेष बहुभाग तथा । हड्डी और पाषाण सम्बन्धी अनुभाग सर्वघाति रूप होते
१७६. प्रश्न : अघातिया कर्मों का अनुभाग किस प्रकार होता
उत्तर : अधातिया कमों में जो सातावेदनीय आदि पुण्य प्रकृतियाँ
हैं उनका अनुभाग गुड़, खांड, शक्कर और अमृत के समान होता है और जो असातावेदनीय आदि पाप प्रकृतियाँ