Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 81
________________ २०४. प्रश्न : किस गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का अनुदय होता है ? उत्तर : मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानों में क्रम से ५, ११, २२, १८, ३५, ४१, ४६, ५०, ५६, ६२, ६३, ६५, ८० और ११० प्रकृतियों का उदय होता है। २०५. प्रश्न : गुणस्थानों में उदय त्रिभंगी की योजना किस प्रकार होती है ? उत्तर : कुल, उदय योग्य प्रकृतियाँ १२२ हैं उनमें से प्रथम गुणस्थान में सम्यमिथ्यात्व, सम्यक्त्व प्रकृति, आहारक शरीर, आहारक शरीरांगोपांग और तीर्थकर इन पाँच प्रकृतियों का उदय न होने से ११७ का उदय है। उपर्युक्त ५ का अनुदय है और ५ की उदय व्युच्छित्ति है। प्रथम गुणस्थान के उदय ११७ में से उदय व्युच्छित्ति की ५ तथा नरकगत्यानुपूर्वी के घटाने से द्वितीय गुणस्थान में उदय १११ का है। उदय व्युच्छित्ति की ५ और अनुदय की पाँच ऐसे १० प्रकृतियों में नरकगत्यानपूर्वी के मिल जाने से अनुदय ११ का और उदय व्युच्छित्ति ६ की है। सासादन की उदय योग्य १११ प्रकृतियों में से उदय व्युच्छित्ति की ६ प्रकृतियाँ घटाने से १०२ रहीं परन्तु तृतीय गुणस्थान में (७६)

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