Book Title: Karananuyoga Part 2 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 80
________________ २०१. प्रश्न : त्रयोदश गुणस्थान में व्युच्छिन्न होने वाली ३० प्रकृतियाँ कौन है ? उत्तर : वेदनीय कर्म की साता-असाता वेदनीय में से एक, वज्रर्षभ नाराच संहनन, निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुस्वर, दुःस्वर, प्रशस्त विहायोगति, अप्रशस्त विहायोगति, औदारिक शरीर, औदारिक शरीरांगोपांग, तैजस, कार्मण, समचतुरनादि ६ संस्थान, वर्णादि ४ अगुरु लघु आदि चार और प्रत्येक शरीर इन तीस प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति तेरहवें गुणस्थान में होती है। २०२. प्रश्न : चतुर्दश गुणस्थान में व्युच्छिन्न होने वाली १२ प्रकृतियों कौन हैं ? . उत्तर : साता-असाता वेदनीय में से कोई एक प्रकृति, मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, सुभग, त्रस, बादर, श्वासोच्छ्वास, आदेय, यशस्कीर्ति, तीर्थकर और मनुष्यायु इन बारह प्रकृतियों की बन्ध व्युच्छित्ति चौहदवें गुणस्थान में होती है। २०३. प्रश्न : किस गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का उदय होता है ? उत्तर : मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानों में क्रम से ११७, १११, १००, १०४, ८७, ८१, ७६, ७२, ६६, ६०, ५६, ५७, ४२ और १२ प्रकृतियों का उदय होता है। (७५)Page Navigation
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