Book Title: Karananuyoga Part 2 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 85
________________ उदय योग्य ५७ प्रकृतियों में से उदय व्युच्छित्ति की १६ प्रकृतियाँ कम हो जाने और १ तीर्थकर प्रकृति के मिल जाने से त्रयोदश गुणस्थान में ४२ प्रकृतियाँ उदय योग्य हैं। एिन्ने अनुदग की ६५ प्रकृनियों में उदय व्युच्छित्ति की १६ प्रकृतियों के मिलाने और १ तीर्थकर प्रकृति के घटाने से ८० प्रकृतियों का अनुदय है तथा ३० की उदय व्युच्छित्ति है। त्रयोदश गुणस्थान की उदय योग्य ४२ प्रकृतियों में से उदय व्युच्छित्ति की ३० प्रकृतियाँ कम करने से चतुर्दश गुणस्थान में उदय योग्य १२ प्रकृतियाँ हैं। पिछले अनुदय की ८० प्रकृतियों में उदय व्युच्छित्ति की ३० प्रकृतियाँ मिलाने से अनुदय योग्य ११० प्रकृतियाँ हैं और १२ प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति है। इस प्रकार मिथ्यादृष्टि आदि चौदह गुणस्थानों में उदय त्रिभंगी की योजना है। २०६. प्रश्न : उदय और उदीरणा में क्या अन्तर है ? उत्तर : आबाधा पूर्ण होने पर निषेक रचना के अनुसार कमों का फल प्राप्त होना उदय कहलाता है और विशिष्ट कारणों से आवाधाकाल के पूर्व ही कर्मों का उदय में आ जाना उदीरणा. है। (६०)Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125