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श्रेणी चढ़ते समय अपूर्वकरण गुणस्थान के पहले भाग में स्थित मनुष्य, प्रथमोगा सम्यग्मृति और सारा कार के २-३-४ गुणस्थानवर्ती नारकी, मरण को प्राप्त नहीं होते। इसी तरह अनन्तानुबन्धी की विसंयोजना कर मिथ्यात्व को प्राप्त होने वाले का अन्तर्मुहूर्त तक मरण नहीं होता तथा दर्शन मोहनीय का क्षय करने वाला, जब तक कृत
कृत्यता रहती है तब तक मरण नहीं करता।' २१२. प्रश्न : कृतकृत्य वेदक सम्यग्दृष्टि मरकर कहाँ उत्पन्न होता है? उत्तर : वृद्धायुष्क कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि का काल अन्तर्मुहूर्त
है। इसके चार भाग करने चाहिये इन चार भागों में से प्रथम भाग में मरने वाला देवों में द्वितीय भाग में मरने वाला देव और मनुष्यों में, तृतीय भाग में मरने वाला देय-मनुष्य-तिर्यंचों में और चतुर्थ भाग में मरने वाला
चारों गतियों में से किसी में भी उत्पन्न होता है। १. इस विषय में दो उपदेश (मत) हैं। एक उपदेश के अनुसार कृतकृत्यदेदक सम्यग्दृष्टि जीव मरता नहीं है और दूसरे उपदेश के अनुसार मरता भी है। (परम पूज्य जयधवला पु० २ पृ० ३१५, २१६ आदि)
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