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२०७. प्रश्न : उदय और उदीरणा की अपेक्षा कर्म प्रकृतियों में
क्या विशेषता है ? उत्तर : प्रमत्त संयत, सयोग केवली और अयोग केवली इन तीन
गुणस्थानों को छोड़कर अन्य गुणस्थानों में स्वामित्व की अपेक्षा उदय और उदीरणा में कोई विशेषता नहीं है। सयोग केवली की उदय व्युच्छित्ति की ३० और अयोग केवली की उदय व्युच्छित्ति की १२ प्रकृतियों को मिलाकर उन ४२ प्रकृतियों में से सातावेदनीय, असातावेदनीय और मनुष्यायु इन तान प्रकृतियों को घटाना चाहिये। इन घटायी हुई तीन प्रकृतियों की उदीरणा प्रमत्त विरत नामक छठे गुणस्थान में होती है और शेष ३६ प्रकृतियों की उदीरणा सयोग केवली के होती है तथा वहीं इनकी उदीरणा व्युच्छित्ति भी होती है। अयोग केवली के उदीरणा
नहीं होती। २०५. प्रश्न : किस गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों की उदीरणा
व्युच्छित्ति होती है ? उत्तर : मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर सयोग केवली गुणस्थान
तक क्रम से ५, ६, १, १७, ८, ८, ४, ६, ६, १, २, १६ और ३६ प्रकृतियों की उदीरणा व्युच्छित्ति होती है।
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