Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 76
________________ १८८. प्रश्न दोनों पक्षों में वयक्षादेव क्या है ? उत्तर : किन्ही आचार्यों के मत से एकेन्द्रिय और विकलत्रय में सासादन गुणस्थान नहीं होता इसलिये एकेन्द्रिय, स्थावर और द्वीन्द्रियादि तीन जातियाँ, इन प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति पहले गुण स्थान में ही हो जाती है फलस्वरूप पहले में १० और दूसरे में ४ प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है। बारहवें गुणस्थान के उपान्त्य में २ की और अन्त्य समय में १४ की दोनों मिलाकर १६ की व्युच्छित्ति कही गई है। चौदहवें गुणस्थान में परस्पर विरोधी होने से साता - असातावेदनीय दोनों का एक साथ उदय नहीं होता अतः १ की व्युच्छित्ति तेरहवें में और १ की चौदहवें में मानी गई है परन्तु नाना जीवों की अपेक्षा दोनों का उदय संभव है अतः २६, १३ और ३०, १२ का विकल्प बन जाता है। यहाँ भूतबली आचार्य के मतानुसार उदय त्रिभंगी का वर्णन किया गया है। १८६. प्रश्न: मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में व्युच्छिन्न होने वाली ५ प्रकृतियाँ कौन हैं ? उत्तर: मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण, इन पाँच प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति प्रथम गुणस्थान में ((७१)

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