Book Title: Karananuyoga Part 2 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 77
________________ होती है अर्थात् द्वितीयादि गुणस्थानों में इनका उदय नहीं रहता। १६०. प्रश्न : द्वितीय गुणस्थान में व्युच्छिन्न होने वाली है प्रकृतियों कौन है? उत्तर : अनन्तानुबन्धी क्रोध-मान-माया-लोभ, एकेन्द्रिय, स्थावर, द्वीन्द्रिय जाति, त्रीन्द्रिय जाति और चतुरिन्द्रिय जाति, इन नौ प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति द्वितीय गुणस्थान में होती है। १६१. प्रश्न : तृतीय गुणस्थान में व्युछिन्न होने वाली एक प्रकृति कौन है ? उत्तर : सम्यमिथ्यात्व प्रकृति, इसकी उदय व्युच्छित्ति तृतीय गुणस्थान में होती है। १६२. प्रश्न : चतुर्थ गुणस्थान में युधिन्न होने वाली १७ प्रकृतियों कौन है? - उत्तर : अप्रत्याख्यानावरण क्रोध-मान-माया-लोभ, वैक्रियिक शरीर वैक्रियिक शरीरांगोपांग, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी; नरकायु, देवायु मनुष्यगत्यानुपूर्वी, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय और अयशस्कीर्ति। (७२)Page Navigation
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