Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 75
________________ तक और मनुष्यायु का उदय प्रारंभ से लेकर सभी गुणस्थानों में होता है। यतस्य सालादर गुणस्थान में हुआ जीव नरक गति में उत्पन्न नहीं होता, अतः उसके नरक गत्यानुपूर्वी का उदय नहीं होता। शेष कर्म प्रकृतियों का उदय मिथ्यात्वादि गुणस्थानों में अपनी-अपनी उदय व्युच्छित्ति के अन्तिम समय तक होता है। १८५ प्रश्न उदय त्रिभंगी किसे कहते हैं ? उत्तर : उदय व्युच्छित्ति उदय और अनुदय को उदय त्रिभंगी कहते हैं T १८६. प्रश्न: किस गुणस्थान में कितनी कर्म प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है ? उत्तर : अभेद विवक्षा से मिध्यादृष्टि आदि चौदह गुणस्थानों में क्रम से १०, ४, १, १७, ८, ५, ४, ६, ६, १, २, (२, १४ ), २६ और १३ प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है। १८७ प्रश्न: भूतबली आचार्य के उपदेशानुसार किस गुणस्थान में कितनी कर्म प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है ? उत्तर : भूतबली आचार्य के उपदेशानुसार मिध्यादृष्टि आदि गुणस्थानों में क्रम से ५, ६, १, ७, ८, ५, ४, ६, ६, १, २, १६, ३० और १२ कर्म प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है। • (90)

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