Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 71
________________ उत्तर : बन्धावस्था को प्राप्त हुए समय प्रबद्ध में ज्ञानावरणादि परिणमन स्वयं हो जाता है। आट कों में सबसे अधिक प्रदेश वेदनीय को, उससे कम मोहनीय को, उससे कम परन्तु परस्पर में समान ज्ञानावरण-दर्शनावरण और अन्तराय को, उससे कम परन्तु परस्पर में समान नाम और गोत्र को तथा आयु कर्म को सबसे कम प्रदेश प्राप्त होते हैं। . ५७६. प्रश्न : प्रदेश र प्रमुख कारण क्या है ? और उसके कितने मेव है? उत्तर : प्रदेश बन्ध का प्रमुख कारण योग स्थान-आत्मप्रदेश परिस्पन्द के विकल्प हैं। उसके तीन भेद हैं- १ उपपाद योग स्थान, २ एकान्तानुवृद्धि योग स्थान और ३ परिणाम योग स्थान। नवीन पर्याय के प्रथम समय में स्थित जीव के उपपाद योग स्थान होता है। पर्याय धारण करने के दूसरे समय से लेकर शरीर पर्याप्ति के पूर्ण होने तक नियम से वृद्धि को प्राप्त होता हुआ एकान्तानुवृद्धि योग स्थान होता है और शरीर पर्याप्ति के पूर्ण होने के समय से लेकर जीवन पर्यन्त परिणाम योग स्थान होता है। इसमें आत्मप्रदेशों का परिस्पन्द कभी कम और कमी बढ़ता रहता है। इसका दूसरा नाम घोटमान योगस्थान

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