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है। आयुकर्म की उदीरणा में यह ध्यान रखना चाहिये कि परभव सम्बन्धी आयु की उदीरणा नहीं होती, मात्र
वर्तमान यु की हो सकती है। १७३. प्रश्न : बद्ध कर्म उदय में किस प्रकार आते हैं ? उत्तर : जिस कर्म की जितनी स्थिति बँधी है उसमें से आबाधाकाल
को घटा देने पर जो काल शेष रहता है उसमें कर्म परमाणु निषेक रचना के अनुसार फल देते हुए निजीणे होते जाते हैं-खिरते जाते हैं। आबाधा व्यतीत होने पर प्रथम निषेक में बहुत कर्म परमाणु खिरते हैं पश्चात् आगे-आगे के निषेकों में कम होते जाते हैं। यह क्रम बाँधे हुए कर्म की स्थिति के अन्त तक चलता रहता है । यह सविपाक निर्जरा का क्रम है यदि तपश्चरणादि के योग से अविपाक निर्जरा का अवसर आता है तो एक साथ बहुत
कर्म परमाणु खिर जाते हैं। ५७४. प्रश्न : कर्मों में अनुभाग फल देने की शक्ति किस प्रकार
पड़ती है ? उत्तर : अनुभाग बन्ध में हीनधिकता कषाय के अनुसार होती है।
विशुद्ध परिणाम-मन्दकषाय रूप परिणामों से शुभ कर्मों में अधिक अनुभाग पड़ता है और अशुभ कर्मों में कम
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