Book Title: Karananuyoga Part 2 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 66
________________ वहीं होता है। विशेष-तीर्थंकर प्रकृति तथा आहारक युगल का जघन्य स्थितिबन्ध अन्तः कोड़ा कोड़ी सागर होता है। मनुष्यायु तथा तिर्यगाय का जघन्य स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त तथा देवायु और नरकायु का दस हजार वर्ष होता है। . १७०. प्रश्न : उत्कृष्ट स्थितिबंध का कारण क्या है ? उत्तर : तीन शुभ आयु के बिना अन्य ११७ प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध यथासंभव उत्कृष्ट संक्लेश परिणामों से होता है और जघन्य स्थितिबन्ध इससे विपरीत अर्थात् मन्दकषाय रूप परिणामों से होता है। तीन शुभायुकों का विशुद्ध परिणामों से उत्कृष्ट और संक्लेश परिणामों से जघन्य स्थितिबन्ध होता है। विशेष- देवायु का उत्कृष्ट स्थितिबंथ, सप्तम् गुणस्थान में चढ़ने के सन्मुख प्रमत्त गुणस्थान वाला करता है। आहारक युगल का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध, छटे गुणस्थान में उतरने के सन्मुख सप्तम् गुणस्थान वाला और तीर्थकर प्रकृति का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध नरक जाने के लिये सन्मुख चतुर्थ गुणस्थानवर्ती अविरत सम्यग्दृष्टि करता है। तीर्थकर, आहारकद्धिक और देवायु इन चार प्रकृतियों के सिवाय अन्य ११६ प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध मिथ्यादृष्टि जीव ही करता है।Page Navigation
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