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निकलता है तथा वर्तमान गुणस्थान की व्युच्छित्ति और वर्तमान गुणस्थान का अबन्ध मिलाने से आगामी गुणस्थान का अबन्ध निकलता है। अन्य प्रकृतियों के मिलाने और
घटाने की योजना निर्देशानुसार कर लेना चाहिये। १६८. प्रश्न : ज्ञानावरणादि मूल प्रकृतियों का स्थिति बन्ध
कितना है ? उत्तर : ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय और वेदनीय कर्म का
उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तीस कोड़ा कोड़ी सागर, नाम और गोत्र का बीस कोड़ा कोड़ी सागर, मोह का सत्तर कोड़ा, कोड़ी सागर, आयु कर्म का तेंतीस सागर है। विशेष-दर्शनमोह-मिथ्यात्व का सत्तर कोड़ा कोड़ी सागर
और चारित्र मोहनीय का चालीस कोड़ा कोड़ी सागर है। असातावेदनीय का तीस कोड़ा कोड़ी सागर और सातावेदनीय
का पन्द्रह कोड़ा कोड़ी सागर है। १६६. प्रश्न : मूल प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबन्ध क्या है ? उत्तर : वेदनीय का जघन्य स्थितिबन्ध बारह मुहूर्त, नाम और
गोत्र का आठ मुहूर्त तथा शेष कमाँ का अन्तर्मुहूर्त है। प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबन्ध व्युच्छित्ति के समय होता है। अर्थात् जिस प्रकृति की जहाँ बन्ध व्युच्छित्ति होती .
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