Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 67
________________ १७१. प्रश्न : आबाथा किसे कहते है ? उत्तर : कर्मरूप होकर आया हुआ द्रव्य जब तक उदय या उदीरणा रूप न हो तब तक के काल को आबाधा कहते १७२. प्रश्न : किस कर्म की कितनी आबाधा होती है ? उत्तर : आरक्ष का विचार अग और उमरगा के भेद से दो प्रकार का होता है। उदय की अपेक्षा, आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कौ की आबाथा, एक कोड़ा कोड़ी सागर की स्थिति पर सौ वर्ष की होती है इसी अनुपात से सब स्थितियों की आबाथा समझना चाहिये। जैसे जिस कर्म की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोड़ा कोड़ी सागर की बँधी है उसकी आबाध सात हजार वर्ष की होगी अर्थात् इतने समय तक वे कर्म परमाणु उदय में नहीं आयेंगे। विशेष- जिन कर्मों की स्थिति अन्तः कोड़ा कोड़ी प्रमाण बँधी है , उनकी आबाधा अन्तर्मुहूर्त की होती है। आयुकर्म की आबाथा एक करोड़ पूर्व के तृतीय भाग से लेकर असंक्षेपाद्धा काल तक होती है। उदीरणा की अपेक्षा सब कर्मों की आबाधा एक आवली प्रमाण होती है अर्थात् बँधी हुई कर्म प्रकृति की एक अचलावली के बाद उदीरणा हो सकती (६२)

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