Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 59
________________ १४ नरकगति, १५ नरकगत्यानुपूर्वी और १६ नरकायु । इन सोलह प्रकृतियों का बन्ध प्रथम गुणस्थान तक ही होता है, आगे नहीं । १५६. प्रश्न: द्वितीय - सासादन गुणस्थान में व्युच्छिन्न होने वाली २५ प्रकृतियाँ कौन हैं ? उत्तर : अनन्तानुबन्धी की चार स्त्यानगद्धि, निद्रा निद्रा, प्रचला प्रचला, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, न्यग्रोधादि चार संस्थान, यज्रनाराचादि चार संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, स्त्रीवेद, नीचगोत्र तिर्यग्गति तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, उद्योत और तिर्यगायु इन पच्चीस प्रकृतियों की बन्ध व्युच्छित्ति द्वितीय गुणस्थान में होती है । १५७ प्रश्न: चतुर्थ - असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में व्युच्छिन्न होने वाली दस प्रकृतियाँ कौन हैं ? उत्तर : अप्रत्याख्यानावरण क्रोध-मान- माया - लोभ, वज्रर्षभनाराच संहनन, औदारिक शरीर, औदारिक शरीरांगोपांग, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और मनुष्यायु, इन दस प्रकृतियों की बन्ध व्युच्छित्ति चतुर्थ गुणस्थान में होती है। १५८. प्रश्न : पंचम - देशविरत गुणस्थान में व्युच्छिन्न होने (५४)

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