Book Title: Karananuyoga Part 2 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 55
________________ १४८. प्रश्न : उत्कृष्ट बन्ध आदि के अवान्तर भेद कितने हैं ? उत्तर : चार हैं.. सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव । जो बन्ध रुककर पुनः जारी होता है वह सादि बन्ध है, जो बन्ध व्युच्छित्ति तक अनादि से चला आता है उसे अनादि बन्ध कहते हैं। जो बन्ध निरन्तर होता रहता है उसे ध्रुव बन्ध कहते हैं तथा जो बन्ध अन्तर सहित होता है उसे अध्रुव बन्ध कहते हैं। अभव्य जीव का ध्रुव और भव्य जीव का अध्रुव बन्ध होता है। १४६. प्रश्न : मूल प्रकृतियों में सादि-अनादि-ध्रुव-अनुव भेद किस प्रकार घटित होते हैं ? उत्तर : वेदनीय और आयु कर्म को छोड़कर शेष छह कर्मों का सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव-चारों प्रकार का बन्ध होता है। वेदनीय कर्म का सादि को छोड़कर शेष तीन प्रकार का बन्ध होता है' तथा आयु कर्म का सादि और अध्रुव ही बन्ध होता है। १. वेदनीय का सादि बन्ध नहीं होता है, क्योंकि उपशम श्रेणी चढ़ने पर भी वेदनीय सामान्य के बन्ध का अभाव नहीं होता। (गो० क० पृ० १००, ६१२, टीका पू० आ. आदिमतिजी; सम्पा० रतनचंद जी मुख्तार)। (५०)Page Navigation
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