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उसे अनुभाग बन्ध कहते हैं। १४५. प्रश्न : प्रदेश बन्ध किसे कहते हैं ? उत्तर : ज्ञानावरणादि कर्मों के प्रदेशों की संख्या में जो हीनाधिकता
लिये हुये परिणमन है उसे प्रदेश बन्ध कहते हैं। १४६. प्रश्न : चतुर्विध बन्ध किन कारणों से होता है ? उत्तर : प्रकृति और प्रदेश बन्ध योग के निमित्ति से और स्थिति
तथा अनुभाग बन्ध कषाय के निमित्त से होते हैं। १४७. प्रश्न : प्रकृति बन्ध आदि के अयान्तर भेद कितने है ? उत्तर : चार हैं- उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, अजघन्य और जघन्य; सबसे
अधिक को उत्कृष्ट, उससे कम को अनुत्कृष्ट, सबसे कम को जघन्य और जघन्य से कुछ अधिक को अजघन्य कहते हैं। अनुत्कृष्ट से अजघन्य तक के भेद मध्यम कहे जाते हैं।
१. अथवा, अनुस्कृष्ट व अजघन्य का स्वरूप ऐसे भी देखने को मिलता है। अनघन्य पद में जघन्य से आगे के सभी विकल्प देखे जाते हैं। (यानी जघन्य से भिन्न सब भेद अजघन्य स्वरूप हैं। इसी तरह उत्कृष्ट से नीचे के अनुत्कृष्ट संज्ञा वाले सब विकल्पों में जघन्य पद का भी प्रयेश देखो जाता है। (धवल पु. १२ पृ ५, ६) (यानी उत्कृष्ट से भिन्न सब भेद अनुत्कृष्ट रूप है।
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