Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 40
________________ कुल में जन्म होता है और नीच गोत्र के उदय से लोक निन्छ नीच कुल में जन्म होता है। नारकी और तिर्यंचों के नीच गोत्र का उदय रहता है। देव और भोगभूमिज मनुष्यों के उच्च गोत्र का उदय रहता है परन्तु कर्मभूमिज . मनुष्यों का जन्म दोनों प्रकार के गोत्रों में होता है। १२०. प्रश्न : अन्सरायकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जो जीव के वीर्यत्व गुण का घात करे अथवा जिसके उदय से दान, लाम, भोग, उपभोग और वीर्य में विघ्न उत्पन्न हो उसे अन्तराय कर्म कहते हैं। इसके पाँच भेद हैं १. दानान्तराय, २. लाभांतराय ३. भोगान्तराय ४. उपभोगान्तराय और ५. वीर्यान्तराय। सबका अर्थ नाम से स्पष्ट है। १२१. प्रश्न : एक समय में कितने कर्म प्रदेशों का बन्ध होता है? उत्तर : एक समय में सिद्धों से अनन्तवें भाग और अभव्यराशि से अनन्त गुणित प्रदेश वाले समय प्रबद्ध का बन्ध होता है। १. परन्तु परमपूज्य भगवद् वीरसेन स्वामी ने कहा है कि- तिरिक्खेसु संजमासजम पडिवालयंतेसु उच्चागोदत्तुवलंभादो (धवल १५/१४२, १७३-७४ आदि) यानी संयमासंयम को पालने वाले तिर्यचों में उच्च गोत्र पाया जाता है। इस प्रकार इस विषय में दो मत हैं। (३५)

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