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५१ अगुरुलघु ५२ परघात ५३ उच्छ्वास ५४ आलप ५५ उद्योत ५६ प्रशस्त विहायोगति ५७ त्रस ५८ बादर ५६ पर्याप्ति ६० प्रत्येक शरीर ६१ स्थिर ६२ शुभ ६३ सुभग ६४ सुस्वर ६५ आय ६६ यशरकीर्ति ६७ निर्माण और ६८ तीर्थंकर अभेदविवक्षा में ५ बंधन और ५ संघात की दस प्रकृतियाँ पाँच शरीर में गर्भित हो जाती हैं और वर्णादिक के बीस भेद न लेकर एक एक 'मेद लिया जाता है इस प्रकार २६ प्रकृतियाँ कम हो जाने से ४२ पुण्य प्रकृतियाँ हैं ।
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१३२. प्रश्न: पाप प्रकृति किसे कहते हैं ? और वे कितनी तथा कौन कौन हैं ?
उत्तर: जिनके उदय में दुःख का अनुभव होता है उन्हें पाप प्रकृति कहते हैं ये भेद विवक्षा से बन्ध रूप ६८ और उदय रूप १०० है तथा अभेद विवक्षा में बन्ध ८२ और उदय रूप ८४ हैं । यथा घातिया कर्मों की ४७, नीच गोत्र, असातावेदनीय, नरकायु, नरक गति, नरक गत्यानुप्पूर्वी, तिर्यग्गति, तिर्यग्गत्यानु पूर्वी, एकेन्द्रियादि चार जाति, समचतुरस्र को छोड़कर पाँच संस्थान, वज्रर्षभ नाराच को छोड़कर पाँच संहनन, अशुभ वर्णादि के बीस, उपघात, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्ति, साधारण,
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