Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 50
________________ अवशिष्ट प्रकृति का ही निरन्तर बन्ध होता है । यथा, साता वेदनीयं और असातावेदनीय ये दोनों प्रकृतियाँ परस्पर विरोधी हैं। इनमें असातावेदनीय की बन्ध व्युच्छित्ति छटे गुणस्थान में हो जाती है अतः छठे गुणस्थान तक तो दो में से किसी एक का बन्ध होगा और सप्तम् गुणस्थान से तेरहवें गुणस्थान तक सातावेदनीय का ही प्रत्येक समय बन्ध होगा । १३७. प्रश्न तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध कब और किसके होता है ? उत्तर : तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध कर्मभूमिज मनुष्य के कंवली या श्रुतकेवली के संविधान में चतुर्थ से लेकर अष्टम् गुणस्थान के छठे भाग तक होता है। तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध, प्रथमोपशम, द्वितीयोपशम, क्षायोपशमिक और क्षायिक, इन चारों सम्यग्दर्शनों में हो सकता है। जिस मनुष्य ने सम्यग्दर्शन प्राप्त करने के पहले तिर्यंच या मनुष्यायु का बन्ध कर लिया है उसे सम्यग्दृष्टि होने पर भी तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध नहीं होगा। हाँ, जिसने सम्यग्दर्शन प्राप्त करने के पहले नरक या देवायु का बन्ध किया है उसे तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध हो सकता है या जिसने किसी (સપૂર્વ

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