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अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अयशस्कीर्ति । ये १०० पापं प्रकृतियाँ हैं। इनमें सम्यग् मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति का बन्ध नहीं होता सिर्फ मिथ्यात्व प्रकृति का बन्ध होता है ! सम्यक्त्व के प्रभाव से मिथ्यात्व के तीन खण्ड हो जाने पर इनकी सत्ता होती है तथा यथा समय उदय भी होता है अतः बन्ध की अपेक्षा ६८ और सत्त्व तथा उदय की अपेक्षा १०० हैं । वर्णादि की बीस प्रकृतियाँ पुण्य और पाप दोनों रूप में होती हैं इसलिये दोनों में शामिल किया जाता है ।
१३३. प्रश्न: आयुकर्म का बन्ध कम होता है ?
उत्तर : आयु कर्म का बन्ध, कर्मभूमिज मनुष्य और तिर्यच के वर्तमान आयु के दो भाग निकल जाने के बाद तृतीय भाग के प्रथम समय में होता है। यदि आयु बन्ध के योग्य लेश्या के अंश न होने से उस समय बन्ध न हो तो अवशिष्ट तृतीय भाग के दो भाग निकल जाने पर तृतीय भाग के प्रारंभ में होता है । इस प्रकार आट अपकर्षकाल आते हैं। यदि इनमें बन्ध न हो तो वर्तमान आयु में जब
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