Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 43
________________ ६. अपर्याप्त ७. सुस्वर ८. दुःस्वर ६. आदेय १०. अनादेय ११. यशस्कीर्ति १२. अयशस्कीर्ति १३. त्रस १४. स्थावर १५. प्रशस्त विहायोगति १६. अप्रशस्त विहायोगति १७. सुभग १८. दुर्भग १६. नरक गति २०. तिर्यग्गति २१. मनुष्यगति २२. देवगति २३. एकेन्द्रिय जाति २४, द्वीन्द्रिय जाति २५. श्रीन्द्रिय जाति २६. चतुरिन्द्रिय जाति और २७. पंचेन्द्रिय जाति। १२८. प्रश्न : पुद्गल विपाकी किसे कहते हैं ? और ये कौन कौन हैं ? उत्तर : जिनका विपाक खासकर पुद्गल पर होता है उन्हें पुद्गल विपाकी कहते हैं। वे ६२ होती हैं- ५ शरीर. ५ बन्धन. ५ संघात, ३ अंगोपांग. ६ संस्थान. ६ संहनन. ८ स्पर्श .५ रस. २ गंध. ५ वर्ण, इस तरह पचास तथा निर्माण, आताप, उद्योत, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, प्रत्येक, साधारण, अगुरु लघु उपघात और परघात ये बारह, दोनों मिलकर ६२ होती हैं। १२६. प्रश्न : भव विपाकी किसे कहते हैं ? और वे कौन कौन उत्तर : जिनका उदय नरकादि पर्यायों में होता है उन्हें भव (३८)

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