Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 39
________________ उत्तर : जिसके उदय से शरीर विशिष्ट कान्ति से रहित हो उसे अनादेय नामकर्म कहते हैं। ११६. प्रश्न : यशस्कीर्ति नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके उदय से जीव की संसार में कीर्ति विस्तृत हो उसे यशस्कीर्ति नामकर्म कहते हैं। ११७. प्रश्न : अयशस्कीर्ति नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके उदय से जीव का संसार में अपयश विस्तृत हो उसे अयशस्कीति नामकर्म कहते हैं। ११८. प्रश्न : तीर्थकर नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके उदय से जीव तीर्थंकर पद को प्राप्त होता है उसे तीर्थकर नामकर्म कहते हैं। यह प्रकृति सातिशय पुण्य-प्रकृति है। इसके उदय से समवशरण में अष्ट प्रातिहार्यों की प्राप्ति होती है। ११६. प्रश्न : गोत्रकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके उदय से जीव के अगुरुलधु गुण का घात हो अथवा यह जीव उच्च-नीच कुल में उत्पन्न हो उसे गोत्रकर्म कहते हैं। इसके दो भेद हैं- १. उच्च गोत्र और २. नीच गोत्र । उच्च गोत्र के उदय से लोक प्रसिद्ध उच्च

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