Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 18
________________ उत्तर : जिसके उदय से जीव बैठे बैटे सो जाता है तथा कुछ जागता रहता है उसे प्रचलादर्शनावरण कर्म कहते हैं।. ३३. प्रश्न : प्रचला-प्रचलादर्शनावरण किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके उदय से सोते समय मुँह से लार बहने लगे तथा हाथ पैर चलने लगें, ऐसी गहरी प्रचला के कारण को प्रचला-प्रचलादर्शनावरण कहते हैं। ३४. प्रश्न : स्त्यानगृति किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके उदय से जीव सोते समय भयंकर कार्य कर ले और जागने पर स्मरण नहीं रहे उसे स्त्यानगृद्धि दर्शनावरण कर्म कहते हैं। इन पाँच निद्राओं से आत्मा के दर्शन गुण का घात होता है इसलिये इन्हें दर्शनावरण कर्म के भेदों में सम्मिलित किया है। ३५. प्रश्न : वेदनीय कर्म किसे कहते हैं ? और उसके कितने भेद हैं ? उत्तर : जिसके उदय से आत्मा के अव्याबाध गुण का घात होता है अथवा जिसके उदय से जीव सुख दुःख का वेदन करता है उसे वेदनीय कर्म कहते हैं। इसके दो भेद हैं (१३)

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