Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 25
________________ उपर्युक्त हास्य आदि नौ भावों का संस्कार क्रोध आदि कषायों के समान दीर्घकाल तक नहीं रहता, इसलिये इन्हें अकषाय वेदनीय अथवा नौ कषायकिंचित्कषाय कहते हैं। ५६, प्रश्न : आयुकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जो आत्मा के अवगाहन गुण को प्रकट न होने दे उसे आयु कर्म कहते हैं अथवा जिस कर्म के उदय से यह जीव निश्चित समय तक नरक, तिथंच, मनुष्य और देव के शरीर में सकार उसे कायु कर्म कहते हैं। ६०. प्रश्न : आयुकर्म के कितने भेद हैं ? उत्तर : चार हैं- १. नरकायु २. तिर्यगायु ३. मनुष्यायु और ४. देवायु । इनका अर्थ नाम से ही स्पष्ट है। ६१. प्रश्न : नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जो आत्मा के सूक्ष्मत्व गुण को प्रकट न होने दे अथवा जिसके उदय से गति-जाति तथा शरीर आदि की रचना होती है उसे नाम कर्म कहते हैं। ६२. प्रश्न : नाम कर्म के कितने भेद हैं ? उत्तर : पिण्ड प्रकृतियों की अपेक्षा बयालीस और सामान्य अपेक्षा से तिरानबे भेद होते हैं। (२०)

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