Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 27
________________ और सिर इन आठ अंगों की तथा अंगुली, कान, नाक आदि उपांगों की रचना हो उसे अंगोपांग नाम कर्म कहते हैं। दररके तीन भेद हैं..... औदारिका शरीरांगोपांग २. वैक्रियिक शरीरांगोपांग और ३. आहारक शरीरांगोपांग । इसका उदय एकेंद्रिय जीवों को नहीं होता। ६८. प्रश्न : निर्माण नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके उदय से अंगोपांगों की रचना यथास्थान तथा यथाप्रमाण हो उसे निर्माण नामकर्म कहते हैं। ६६. प्रश्न : बन्धन नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से औदारिकादि शरीरों के परमाणु परस्पर बन्धनरूप अवस्था को प्राप्त हों उसे बन्धन नामकर्म कहते हैं। इसके औदारिक शरीर बन्धन आदि पाँच भेद हैं। ७०. प्रश्न : संघात नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिसके उदय से औदारिक आदि शरीरों के परमाणु परस्पर छिद्र रहित होकर मिलें उसे संघात नामकर्म कहते है। इसके औदारिक शरीर संघात आदि पाँच भेद होते : (२२)

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