Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 32
________________ उत्तर : जिसके उदय से विग्रहगति में आत्म्य प्रदेशों का आकार पिछले (छोड़े हुए) शरीर के आकार का हो। इसके चार भेद हैं १. नरक गत्यानुपूर्व्य २, तिर्यग्गत्यानपव्यं ३. मनुष्यगत्यानुपूर्व और ४. देवगत्यानुपूव्यं । जैसे कोई मनुष्य मरकर देव गति में जा रहा है उसके देवगत्यानुपूर्वी का उदय होगा और छोड़े हुए मनुष्य के शरीर का आकार विग्रह गति में बना रहेगा। आनुपृव्यं नामकर्म का उदय विग्रहगति में ही होता है। ९०. प्रश्न : विग्रहगति किसे कहते हैं ? उत्तर : पूर्व शरीर छूटने पर नवीन शरीर ग्रहण करने के लिये जीव का जो गमन होता है उसे विग्रह गति कहते हैं। इसके चार भोद हैं- १. ऋजु गति (इशु गति २. पाणिमुक्तागति ३. लांगलिकागति और ४. गोमूत्रिकाते। इनमें से ऋजुगति में आनुपूर्व्य का उदय नहीं होता क्योंकि एक समय के भीतर ही नवीन शरीर का आकार प्राप्त हो जाता है। ६१. प्रश्न : अगुरुलघु नामकर्म किसे कहते हैं ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से ऐसा शरीर प्राप्त हो जो लोहे के (२७)

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