Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 20
________________ १. अनन्तानुबन्धी क्रोध मान माया लोभ २. अप्रत्याख्यानावरण क्रोध- मान- माया लोभ ३. प्रत्याख्यानावरण क्रोध - मान-माया लोभ और ४. संज्चलन क्रोध-मान-माया-लोभ (४४४ = १६ ) | नौकषाय के नौ भेद हैं- १. हास्य २. रति ३. अरति ४ शोक ५. भय ६. जुगुप्सा ७. स्त्री वेद ८ पुरुष वेद और ६. नपुंसक वेद । Į ४०. प्रश्न : मिथ्यात्य किसे कहते हैं ? उत्तर: जिसके उदय से जीव की अतत्त्व श्रद्धान रूप परिणति होती है उसे मिश्यात्व कहते हैं ! ४१. प्रश्न : सम्यङ् मिथ्यात्व किसे कहते हैं ? उत्तर: जिसके उदय से मिथ्यात्व और सम्यक्त्व के मिश्रित परिणाम होते हैं उसे सम्यङ् मिध्यात्व कहते हैं । ४२. प्रश्न : सम्यक्त्व प्रकृति किसे कहते हैं ? उत्तर: जिसके उदय से वेदक ( क्षायोपशमिक ) सम्यग्दर्शन में चल, मलिन और अंगाढ़ दोष लगते हैं उसे सम्यक्त्व प्रकृति कहते हैं। ४३. प्रश्न : चल दोष किसे कहते हैं ? " (१५)

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