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।' उसने माना अग्नि देवता प्रसन्न हुए है। उन्हींका प्रसाद है कि यह स्फुलिंग उसे प्राप्त हुआ है । चकमककी रगड़ तो प्रसाद-प्राप्तिके लिए निमित्तमात्र साधन है।
आज दियासलाई जलाकर हमने आग पाई और एक फार्मूला ( सूत्र ) प्रस्तुत किया कि अमुक रसायन - तत्त्वोंसे बनी हुई दियासलाईको अमुक मसालेसे रगड़नेपर अवश्य अग्नि प्राप्त होगी । उस फार्मूलेके सहारे से हमने देवताका निर्वासन कर दिया और अग्नि हमारी चेरी होकर रह गई ।
यह फार्मूला-बद्ध धारणा स्पष्ट, निश्चित, और कदाचित् अधिक तथ्यमय अवश्य है, किन्तु अनुभूतिसूचक नहीं है । इस धारणासे हमारे चित्तके किसी भावको तृप्ति नहीं प्राप्त होती ।
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अधिकाधिक अनुभूति-संचय और अवबोधवृद्धिके बाद मनुष्यने अपनेको ज्ञाता अनुभव करना आरम्भ किया । उसने अपनेको पदार्थोंसे और पदार्थो को अपनेसे एक बार अलग करके फिर उन्हे बुद्धिके मार्गद्वारा अपने निकट लानेकी चेष्टा की ।
हम कह चुके हैं, मानव अपनी सब चेष्टाओं, सब प्रयत्नों और सब प्रपंचोद्वारा, जाने-अनजाने एक ही सिद्धिकी ओर बढ़ रहा है । और वह सिद्धि है, अपनेको विश्वके साथ एकाकार करना और विश्वको अपने भीतर प्रतिफलित देख लेना । बुद्धिके प्रयोगद्वारा भी वह इसी भेद-अनुभूति तक पहुँचना चाहता है । किन्तु, मानवबुद्धि उस तलकी वस्तु है जहाँका सत्य विभेद है, अभेद नही । वह अन्वयद्वारा चलती है, खण्ड खण्ड करके समयको समझती है । अहंकार उसका मूल है और ज्ञेयका पार्थक्य उसकी शर्त ।
जहाँ यह बुद्धि प्रधान होकर रही, जहाँ उसने पदार्थको उसके
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