Book Title: Jainendra ke Vichar
Author(s): Prabhakar Machve
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 181
________________ मानसिक संकीर्णताका विष फैलानेवाली पुस्तकोंका प्रचार ही मैं निषिद्ध ठहरा दूँ । उनसे समाजका बड़ा अकल्याण होता है । प्रश्न - मुग़ल- कालमें राजपूतोको उत्साह दिलाने के लिए उस समय के कवियोंने जो साहित्य रचा- वह भी क्या आपकी ऊपर कही गई व्याख्यामें आ जाता है ? उत्तर- इस प्रश्नमें एक भूल मालूम होती है। उपयोगिताकी दृष्टिसे आपके लिए उपयोगी वस्तु वही हो सकती है, जो कल या परसों अनुपयोगी हो जाय । जिसमे अनुपयोगी होनेका सामर्थ्य नहीं वह वस्तु उपयोगी ही नहीं । जिसने शूरता और बलिदानका ओज-दान किया वह साहित्य निर्जीव नहीं रहा होगा । उसकी सजीवता असदिग्ध है । किन्तु यदि उसके साथ यह भी मिलता हो कि यवनको मारो और आज उस ' यवन' शब्दकी ध्वनिमें एक विशिष्ट जातिका बोध समाविष्ट रहता है तो कहना होगा कि वह अश ग़लत है। आज वह ओज-संचारी भी नहीं हो सकता । अमुकको विरोधमें रखकर यदि हम अपने भीतर शक्ति पाते हैं, तो वह शक्ति नहीं है, वैर है । साहित्य प्रेमोत्सर्गकी शक्ति देता है । द्वेष और घृणाकी शक्ति देनेवाला उतने ही अंश में असाहित्य है । -तबकी परिस्थितियोंमें विशिष्ट रूपसे उपयोगी पड़नेवाले साहित्यका हक है कि वह आजके लिए अनुपयोगी हो जाय । उस ज़मानेका बहुत-सा साहित्य हमारे बढते हुए जीवनका अब भी साथ नहीं दे पा रहा है और छूटता जा रहा है। प्रश्न - तो क्या आपका मतलब यह है कि उस समय के साहित्यको निकाल दिया जाय ? यदि यही मतलब हो तो भूषणादि कवियोकी बहुत-सी कविताएँ निकल जायेगी । उत्तर—यह मतलब तो कैसे हो सकता है कि एक झाड़ूसे सबको साफ दिया जाय। हॉ, यह तो ठीक ही है कि पुराना सब कुछ जीवनकी गति के -साथ निभ नहीं सकता । निकाल देनेकी बात तो शासन-प्राप्त लोग करें । मैं तो यही कहने योग्य हॅू कि जो लेन और पाने योग्य है उसको लेने और पानेमें, जो छूटने योग्य है वह स्वयंमेव छूट जायगा । आज अगर हिन्दीमे भी भूषणसे अधिक रवीन्द्र पढ़े जाते हैं तो क्या मैं इसको भूपणका अपमान समझू ! दिन आ सकता है कि रवीन्द्र भी एक दिन न पढ़े जायँ । लेकिन इन बातो में मानापमानका प्रश्न ही कहाँसे उठता है ? यदि आज, आज ही रातके बारह चजे खत्म हो जायगा, कलंके दिन बिल्कुल शेष न रहेगा, तो क्या किसी | 1 २७०

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