Book Title: Jainendra ke Vichar
Author(s): Prabhakar Machve
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 199
________________ ३१० साहित्य-परिषद जैनेन्द्रजीने जो भाषण दिया था, उसके ये कुछ अंश हैं। प्रेस में बराबर रिपोर्ट न छपनेसे इन दो पृष्ठोंमे कुछ अशुद्धियाँ रह गई हैं। इस भाषण में बतलाया गया है कि साहित्यिकका पंडित होना आवश्यक बात नहीं है। क्या जाने वह उचित भी न हो । हिन्दीके कई संत -कवियोंको लिखनापढ़ना बिल्कुल नहीं आता था। कबीर और सूर संप्रदाय के सभी कवि ऐसे थे जो भजन रचते और गाते थे । वे कविता ' लिखा ' नहीं करते थे, ' कहा करते थे । " C Poets open new windows in the soul ' ( =कवि आत्मामें नये वातायन खोल देते हैं) सैम्युएल बटलरकी यह उक्ति इसी संदर्भ में पड़ी जाय । साथ ही 'हिन्दी में सजीव साहित्यकी आवश्यकता' शीर्षक श्री 'अज्ञेय' की अपील ('विशाल भारत' ) और जैनेन्द्रका उसपर नोट भी पढा जाय । ८ लेखकके प्रति यह संदेश बच्चोंके पत्र 'पीयूष ' के लिए लिखा गया था। ९ संपादक के प्रति है । इस चिडीकी विचार-प्रवर्तकता और 'स्यादवाद 'मय तर्क-पद्धति महत्त्वपूर्ण ('विद्या' में प्रकाशित ) १० आलोचकके प्रति मैं इसे जैनेन्द्रजीके सर्वोत्तम लेखोंमें गिनता हूँ। यह बहुत सुलझी हुई और क्रमबद्ध सफाई है । उनके ' सुनीता ' उपन्यासपर भिन्न भिन्न व्यक्तिओद्वारा जो तरह तरहकी आलोचनायें हुईं थीं उनको, संक्षेपमे, उनके सापेक्ष महत्त्वानुसार उत्तर देनेका प्रयत्न किया गया है । बुद्धिद्वारा जीवनके आह्लादको ग्रहण करनेकी जो मानवी क्षमता है वह, जहाँ मनुष्य मुमुक्षु न रहकर वादी और ज्ञानाग्रही होने लगता है, वहीं कम हो जाती है। इसीको लेखक जैनेन्द्रजीने अपने सामने रक्खा है । बौद्धोंकी तरह स्वामी रामने एक जगह कहा है- whosoever grasps loses. यही तत्त्व इस पुस्तकसे झलक रहा है । इस लेखकी तीसरी बात ज्ञानकी अपेक्षा - कृति ( = Relativity ) है । • रविबाबूकी ' घरे बाहिरे' और 'सुनीता' का जो संतुलन जैनेन्द्रजीने

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