Book Title: Jainendra ke Vichar
Author(s): Prabhakar Machve
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 203
________________ वेदनाके साथ एकात्म वैषम्य व्यक्त और अव्यक्त व्यक्तरूप व्यक्ति और समाज व्यक्ति और समष्टि व्यक्तिकी अद्वितीयता व्यक्ति मूल व्यक्तिच व्यक्तित्व और व्यक्ति व्यक्तित्व, शून्य व्यक्तित्व, स व्यथा विसर्जन व्यवसायशीलता व्यवसायशीलता, सच्चीव्यय और प्रतिफल और प्राप्त व्यय और श्रम व्यवहारवादिता व्याकरणकी चिन्ता व्यापार व्यापार शोषण है वृत्तियाँ, रसग्राही वृत्तियाँ, रेरिफाइड (Ranfied ) वाइसराय शक्तिपूजा शब्दज्ञान श ३३३ १९ शाश्वत ३७ शासन-शक्तिका आतंक १६५ शांति - प्रस्थापन २८४ शिल्प कौशलकी विद्वत्ता २७४ शिवा बावनी शोषण शंकासे मुक्ति २०० ४९ १५८ श्रद्धा २१८ श्रद्धा, अंधी ११८ श्रद्धाका माध्यम १४ श्रद्धोपेत बुद्धि १४ ર १५ १९५ १९३ १९२ सच्चिदानंद १९३ सत् ५२ ५४ १३६ -- २६ सत्-असत् ९८ सत्, निरपेक्ष - कामना १३२ सत् शक्ति १६८ सत्य श्रद्धाशून्य, संदेहग्रस्त श्रद्धा स्नेहका वल श्रद्धाहीन बुद्धि, बंध्या और लँगड़ी ३८,२१९ श्रुति-स्मृति २६३ सत्य, अखंड सत्य अभेदात्मक है सत्य - आग्रह | सत्य और वास्तव सत्य अंतिम नहीं है ८४ ६९ सत्यकी प्रतिष्ठा सत्यचर्या शब्दकी कीमत २४५ शचन्द्र चट्टोपाध्याय १०१,२९७ सत्य चेष्टा शरीरकी रुकावट, सत्यज्ञान मार्गमें १०६ सत्य धर्म शहीद २७५ सत्य पूजा २३९ ලදි r २६२ २७१ ७७ २१५ २१८ २१७ १४५ २२१ २३ ७‍ ૨૮૪ २४७ ४८ १७ १३ २२ २९७ ३९ २९ २९३ ६५ १७ ३५ જ ૨૦૪ २४

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