Book Title: Jainendra ke Vichar
Author(s): Prabhakar Machve
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 185
________________ रहेंगी। और मुल्कोने देखते देखते अपनी अपनी भाषाओंको सर्व-सम्पन्न बना लिया है। एक बेर सोचा कि अपनी ही भाषामें अपनेको व्यक्त करेगे, और जब राष्ट्र-भरने यह सोचा, तब राष्ट्रकी राष्ट्र-भाषाको समय होनेमे देर क्या लगेगी? प्रश्न-हिन्दी साहित्यको पुष्ट और रुचिकर बनानेके लिए आपकी रायमें कौन-कौन से उपाय होने चाहिए ? उत्तर-मैं तो एक ही उपाय जानता हूँ। यह मैं लेखककी हैसियतसे कहता हूँ, ऐडमिनिस्ट्रेटरकी हैसियतसे नहीं। और लेखककी हैसियतसे जो मैं उपाय जानता हूँ वह यह है कि छोटे संकुचित स्वार्थसे मैं बाहर निकलूं, मेरी सहानुभूतिका क्षेत्र व्यापक हो । कमसे मैं विमुख न रहूँ, जो सोचूँ पूरे हृदयसे सोचूं । अपनेको बचाऊँ नहीं, और अपने जीवनमें अपने आदर्शको उतारूँ। मेरा प्रेम मेरे साहित्यको रुचिकर बनायेगा । अपने विश्वासोके प्रति मेरी लगन और तत्परता मेरे साहित्यको पुष्टता देगी। ___ इसके अतिरिक्त आपके प्रश्नपर मैं किसी दूसरी दृष्टिसे अभी यहॉ विचार नहीं करना चाहता। ७-९-३६ www २२.

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