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उस वेदनाको हृदयंगम करके हम फिर तनिक जवाहरलालकी जीवन- धाराकी ओर मुड़े और स्रोतपर पहुँचें—
युवा नेहरूने जीवनमें प्रवेश किया है । उत्साह उसके मनमें है, प्रेम और प्रशंसा तथा सम्पन्नता उसके चारों ओर है और सामने विस्तृत जीवन के अनेक प्रश्न है, अनेक आकांक्षाएँ और भविष्यकी यवनिकाके शनैः शनैः खुलने की प्रतीक्षा है। अभी तो वह अज्ञेय है, अँधेरा है ।
जवान नेहरू प्रशासे भरा है । आशा है, इसीलिए असंतोष है। भविष्य के प्रति उत्कंठा है, क्योंकि वर्तमानसे तीव्र तृप्ति है। वह विलायत में रहा है, वहीं पला है । जानता है, आज़ादी क्या होती है । जानता है, ज़िन्दगी क्या होती है । साहित्य पढ़ा है और उसके मनमें स्वप्न हैं । लेकिन, अब यही आदमी हिन्दुस्तानमें क्या देखता है ? देखता है गुलामी ! देखता है गंदगी !! देखता है निपट गरीवी !!! उसके मनमें हुआ कि यह क्या अन्धेर है ? यह क्या गजब है ! उसका मन छटपटाने लगा। ऐसे और भी युवा थे जो परेशान थे । - जहाँ-तहाँ राष्ट्रीय यत्न चल रहे थे । वह इधर गया उधर मिला, पर कहीं तृप्ति नहीं मिली । ये लोग और ऐसे स्वराज्य लेगे !
- वह शान्त रहने लगा । जिनका प्रशंसक था उनकी आलोचना उसके मनमें जागने लगी । वह युवक था आदर्शोन्मुख, अधीर, सम्पन्न और विद्वान् | कुछ वह चाहने लगा जो वास्तव इतना न हो जितना स्वप्न हो । पर, स्वप्न तो शरीर होता है और मानव सशरीर । स्वप्न भला कब कब देह धारण करते हैं ? लेकिन, इस जवाहरका -मन उसीकी माँग करने लगा । उसके छटपटाते मनने कहा कि ये
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