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नेहरू और उनकी 'कहानी'
जवाहरलालने कहा- मैं बच्चा नहीं हूँ । गाँधीने कहा – तुम वीर हो ।
जवाहरलालने कहा—मै हारा नहीं हूँ, चलना नहीं छोहूँगा । गाँधीने कहा- चले तो चलो ।
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वह यात्रा तो हो ही रही है। लेकिन, जवाहरलालके मनकी पीड़ा बढ़ जाती है । उसके भीतरका क्लेश भीतर समाता नहीं है । - गाँधी स्वप्न - पुरुषकी भाँति उसे मिला । अब भी वह जादूगर है !.... लेकिन, अरे ! यह क्या बात है ! देखो, पॉलिटिक्स यह कहती है, इकोनॉमिक्स वह कहती है। और गाँधी कहता है, धर्म । धर्म I दकियानूसी बात है कि नहीं !....है गाँधी महान्, लेकिन, आाखिर तो आदमी है। पूरी तरह पढ़ने-पढ़ानेका उसे समय भी तो नहीं मिला । इन्टरनेशनल पॉलिटिक्स ज़रा वह कम समझे, इसमें अचरजकी बात क्या है ?.... और हाँ, कहीं यह रास्ता तो गलत नहीं है ?.... पॉलिटिक्स....इकोनॉमिक्स.... लेकिन गाँधी महान् है, सच्चा नेता है ।
जवाहरलालने कहा —— गाँधी, सुनो, तुम्हें ठहरना ज़रूर पड़ेगा। हमारे पीछे लाखोंकी भीड़, यह कांग्रेस, आ रही है। तुम और हम चाहे गड्ढे में जायँ, लेकिन कांग्रेसको गड्ढे में नहीं भेज सकते । बताओ, यह तुम्हारा स्वराज्य क्या है जहाँ हम सबको लिये जा रहे हो ?
गॉधीने कहा -- लेकिन ठहरो नहीं, चलते चलो। हाँ, स्वराज्य ? वह राम-राज्य है |
- राम-राज्य ! लेकिन हमको तो स्वराज्य चाहिए, आर्थिक, राजनीतिक, सास्कृतिक...।
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