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उन बातोंको करके वह बड़ा आदमी बनता है, अब मैं समझ गया, जी । लेकिन जो बड़ा नहीं है, आदमी तो वह भी है न-क्यों जी ? मै दिनभर सच-मूठ बात करूँ तो मैं भी बड़ा हो जाऊँ ? और बड़ा न होऊँ, तब भी मैं आदमी रहा कि नहीं रहा ? उन्होंने कहा, 'तू मूढ़ है । बड़ा तू क्या होगा ? तू आदमी भी
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नहीं है।'
' लेकिन जी, बात तो मैं भी करता हूँ । अब कर रहा हूँ कि नहीं ? लेकिन, फिर भी मैं अपनेको निकम्मा लगता हूँ। ऐसा क्यों है ? ' 'अरे तू मतलबकी, कामकी बात जो नहीं करता है ! '
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प्रजी, तो बात करनेका काम तो करता हूँ ! यह कम मतलब है ? '
वह बोले, ' अच्छा, जा जा, सिर न खा । तू गधा है। ' अब यह बात तो मै जानता हूँ कि गधा नहीं हूँ । चाहूँ तो भी नहीं हो सकता । गधेकी तरह सींग तो अगर्चे मेरे भी नहीं हैं, लेकिन, इतना मेरा विश्वास मानिए कि यह साम्य होनेपर भी गधा मैं नहीं हूँ। मैं तो दयाराम हूँ। कोई गधा दयाराम होता है ? और मे श्रीवास्तव हूँ, कोई गधा श्रीवास्तव होता है ? वकील - डाक्टर नहीं हूँ, लेकिन श्रीवास्तव तो मै हर वकालत - डाक्टर रीसे अधिक सचाई के साथ हूँ। इसलिए, उन गुरुजनके पाससे मै भले आदमीकी भाँति सिर झुकाकर चला आया ।
चुपचाप
लेकिन, दुनियामें वकील - डाक्टर ही सब नहीं है । यों तो इस 1 दुनियामें हम जैसे लोग भी हैं जिनके पास बतानेको या तो अपना नाम है या बहुत से बहुत कुल गोत्रका परिचय है ! इसके अलावा
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