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राम-कथा
मुझे मालूम हुआ कि मै पण्डितजीके रामचन्द्रको छोड़कर बालको के रामजीकी ओर इस समय उठकर तनिक चला जाऊँ तो यह मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्रका अपमान शायद न होगा । मैं उठा । इतनेमे पड़ोसी सज्जन लपककर पास आये, बोलेबैठिए बैठिए, बाबूजी ।
मैंने कहा - मै जाऊँगा जरा....
सज्जनने हाथ जोड़कर कहा— जाइएगा ? आपने बड़ी कृपा की। लीजिए, यह प्रसाद तो लेते जाइए ।
मैने प्रसाद लिया और चला आया ।
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