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हो; पर वह था । उस नामपर वे उत्साहित हो सकते थे, या चुप हो सकते थे। था तो वह बालकोंका बचपन ही, पर फिर भी वह बचपन उनका भाग था । 'राम'-यह मात्र शब्दके लिए न था, इससे कुछ बहुत अधिक था, बहुत अधिक था। ___ पण्डितजीके दशरथ-पुत्र रामचन्द्र भी क्या वैसे उनके निकट हैं ! मुझे जानना चाहिए कि वह रामचन्द्र अधिक स-इतिहास है, उनका नाम-धाम, पिता-माता, सगे-सम्बन्धी, तिथि-ब्यौरा, उनके बारेका सब कुछ यह पण्डितजी जानते हैं । वह रामचन्द्रजी आवश्यक-रूपमें अधिक प्रमाण-युक्त, शरीर-युक्त, तर्क-युक्त हैं। उनके सम्बन्धमें कम प्रश्न किये जा सकते हैं और लगभग सब प्रश्नोंका उत्तर पंडितजीसे पाया जा सकता है। लेकिन, क्या इसी कारण वह रामचंद्र पंडितजीसे दूर और अलग नहीं बन गये हैं ? रामचन्द्र दशरथके पुत्र थे, पर पण्डितजी अपने पिताके पुत्र है। इसलिए रामचन्द्रजी जो रहे हों रहें, पण्डितजी तो पण्डित ही रहेंगे। हाँ, राम-कथा करना उनका काम हो गया है, सो बड़े सुन्दर दंगसे वे उस कथाको कहेंगे । तदुपरांत, रामचन्द्र अलग वह अलग । उनका जीवन अपना जीवन है । वे जीवनका कोई भाग रामचन्द्र (के आदर्श ) के हाथमे क्यों देगे ?
यह सोचते सोचते मैने देखा कि राम-कथा-स्नेहसे भीगी पण्डितजीकी तल्लीन दृष्टि असावधान और कर्म-कठोर पुरुष-वर्गकी ओरसे हटकर, रह-रहकर, धर्म-प्राण भक्ति-प्रवण अबलाओंकी ओर अधिक आशा-भावसे बँध जाती है। १५२