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थोड़ी देर बाद हरीशने कहा-अच्छा बताओ विमला, मेह कौन बरसाता है ? विमला-बादल बरसाते हैं। हरीश बादल नहीं बरसाते है। विमला-तो कौन बरसाता है ? हरीशने बताया-रामजी बरसाते हैं ।
उस समय मुझसे रुका न गया और चलता हुआ मै पास पहुँच गया; कहा- कोई भी मेह नहीं बरसाता जी । इतनी देरसे बादल भर रहे हैं। बताओ, कहीं मेह बरस भी रहा है ? (और मैंने विमलाको गोदीमे उठा लिया ) और क्यों जी हरीश बाबू, तुम्हारा रामजी मेह जल्दी क्यो नहीं बरसाता है, क्या बैठा सोच रहा है !
हरीश लजा गया और विमला भी लजा गई।
पंडितजीकी कथा सुनकर मुझे वह बालकोंवाला रामजी याद आ गया । पंडितजीवाले रामचन्द्रजी, जो बाकायदा दशरथके पुत्र है और जो निश्चित घड़ीमें जन्म लेते हैं, क्या वही है जो बालकोंका मेह बरसाते है ! दशरथके पुत्र रामचन्द्रजी तो पंडितजीकी पंडिताईके मालूम हुए । बादलोके ऊपर, आसमानके भी ऊपर, सभी कुछके ऊपर, फिर भी सब कहीं जो एक अनिश्चित आकार-प्रकारके रामजी रहा करते है, मेह तो वह बरसाते है । वह रामजी पंडिताईके नहीं, वह तो बालकोके बालकपनके ही दीखते है । मै सोचने लगा कि पंडितका पाण्डित्य क्या सचमुच बच्चेके बचपनसे गम्भीर सत्य नहीं है ? बालकका रामजी, जिसका उसे कुछ भी ठीक अता-पता नहीं है, उन राजा रामचन्द्रसे, जिनका रत्ती रत्ती १५०