Book Title: Jainendra ke Vichar
Author(s): Prabhakar Machve
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 135
________________ व्यवसायका सत्य बिना सम्भव नहीं होती। चेतन व्यक्त होनेके लिए अचेतनका आश्रय लेता है। इनर्जी अपने अस्तित्वके लिए 'डेड मैटर' की प्रार्थिनी है । पर जैसे नींद जागरणके लिए आवश्यक है, नींद अपने आपमें तो प्रमाद ही है, जागरणकी सहायक होकर ही वह स्वास्थ्यप्रद और जरूरी बनती है, वैसे ही वह व्यय है जो किसी कदर पैसेके चक्रको धीमा करता है । किन्तु, प्रत्येक व्यय यदि अन्तमें जाकर इन्वेस्टमेण्ट नहीं है, तो वह हेय है। हम भोजन स्वास्थ्यके लिए करते है और सेवाके कार्यके लिए हमें स्वास्थ्य चाहिए । इस दृष्टि से भोजनपर किया गया खर्च इन्वेस्टमेण्ट बनता है । अन्यथा, रसनालोलुपताकी वजहसे भोजनपर किया गया अनाप-शनाप खर्च केवल व्यय रह जाता है और वह मूर्खता है । वह असलमे एक रोग है और भाँति-भाँतिके सामाजिक रोगोंको जनमाता है। जहाँ जहाँ व्ययमे उपयोग-बुद्धि और विवेक बुद्धि नहीं है, जहाँ जहाँ उसमे अधिकाविक ममत्व-बुद्धि और विषय-बुद्धि है, वहाँ ही वहाँ मानो रुपयेके गलेको घोंटा जाता और उसके प्रवाहको अवरुद्ध किया जाता है। सचा व्यवसायी वह है जो कि रुपयेको काममें लगाता है और अपने श्रमका उसमें योग-दान देकर उत्पादन बढ़ाता है। सचा आदमी वह है जो कर्म करता है और कर्मके फलस्वरूप और कर्म करता है । हम देखते आ रहे हैं कि वह व्यक्ति रुपयेका मूल्य उठाना नहीं जानता जो उसे, बस, खर्च करता है । रुपयेकी कीमत तो वह जानता है जो उसे खर्च करनेके लिए ही खर्च नहीं करता यानी अपने ऊपर नहीं खर्च करता है, प्रत्युत मेहनत

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