________________
उत्पन्न करता है । भय-जात साहस और भय-जात बलमें आसुरी अवलता है। भय एक दृष्टि से उपकार भी करता है। उससे निमीकताकी अनिवार्य आवश्यकता प्रकट होती है। भय निस्सन्देह उन्नतिके मार्ग में बहुत जरूरी है। पर मय उभय है। उससे मौत पास खिंचती है। वह मौतको न्योता है।
श्रद्धासे शास्त्र-पुराण, साहित्य-विज्ञान, कला-दर्शन, क्रान्ति और बलिदान वनते हैं । श्रद्धा मौतको प्रेम भी कर सकती है । इस लिए नहीं कि वह मौत है। बल्कि इस लिए कि श्रद्धा जानती है कि मृत्यु जीवनकी दासी है। श्रद्धा जानती है कि यदि जीर्णकी मौत है तो इसी निमित्त किं नूतनकी सृष्टि हो और जीवन उत्तरोत्तर पल्लवित हो। श्रद्धा आँख नहीं मीचती। वह आँख खोले रखकर मौतमें जीवनके संदेशको और शत्रुमें बंधुको पहचानती है।
हम कह सकते है कि वह श्रद्धा है तो मनुष्य शुतुरमुर्ग नहीं है। पर हम उस मतवादीसे कैसे पार पायें जो मनुष्यको इतना तर्क-संगत
और विज्ञान-शुद्ध बनाना चाहता है कि श्रद्धा उसके पास न फटके । तब हम उस बुद्धिवादीको शुतुरमुर्गका वकाल कहते हैं। ___ मुझे इसमें संदेह है कि आँख एक ही क्षणमें चारों ओर देखती है। मुझे प्रतीत होता है कि वह एक पलमें एक ही ओर देखती है।
और मुझको ऐसा भी मालूम होता है कि हमारी बुद्धिमें दृश्यको Perspective देखनेकी शक्ति न हो तो आँख देखकर भी कुछ न देख सके । Perspective की शक्ति अर्थात् दृश्यकी विभिन्नतामें एकता देखनेकी शक्ति । इसी प्रकार व्यक्तित्वको चहुँमुखी होनेके लिए एक निष्ठाकी आवश्यकता है। शंकाके सामर्थ्य के लिए निश्शंकित २१८