Book Title: Jainendra ke Vichar
Author(s): Prabhakar Machve
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 163
________________ होगे कि वे अविभाज्य रूपमें एक ही हैं ? और सच, वे बीचमें कटे हुए कहाँ हैं। इसीसे मै कहता हूँ कि काल एक है । और सोचिए, एक दिन भी क्या है ? २४x६०x६० सेकंडोंका जोड़ ही नहीं है ? लेकिन क्या सिर्फ जोड़ ही है ? क्या सब सेकंड अलग-अलग है और दिन उनका ढेर ? ऐसा नहीं है ।' दिनकी एक स्वतंत्र सत्ता है। सेकंड उसके २४x६० x ६० वें खण्डकी २४X६०४६० कल्पना- संज्ञा मात्र है । इसी भाँति तीनों दिनोंकी भी एक प्रखण्ड सत्ता है, शनि रवि सोम तो उसी एकके तिहाई तिहाई कल्पित भागोंके नामकरण- मात्र है । ऊपरके कथनसे एक बात स्पष्ट होती है । वह यह कि तमाम गतिमें एक संगति है । जो तत्त्व आज और कलके बीच फासलेकी अपेक्षा गति है वही उन दोनोमें मध्यवर्ती एकताकी अपेक्षा संगति है । अतीतका हमारे पास नहीं हिसाब, भविष्यका नहीं ज्ञान और वर्तमान तो छन छन रंग बदल ही रहा है। फिर भी, हम एक ही बार जान लें कि उन सबमें एक अखण्डता है, एक संगति है । भूत वर्तमानसे विच्छिन्न नहीं है और वह भूत भविष्यके भी विरुद्ध नही है । इन दोनोंमें परस्पर विरोध देखकर चलना ऐतिहासिक विवेकशीलता (= Historical Sense ) के विरुद्ध है । पक्षोके संतुलन के समय यह बात भूलनी नहीं चाहिए कि अतीतके श्राधारपर वर्तमानको समझना ही जिस भाँति बुद्धिमत्ता और विद्वत्ता है, उसी भाँति वर्तमानकी स्वीकृतिके श्राधारपर भविष्यकी निर्माण धारणा बनाना वास्तविक शिल्प - कौशल है । प्रगति निर्माण में है । प्रगति भूतके ऐसे अवगाहन और भविष्यके २३० "

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