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जरूरी भेदाभेद
तरफ फैली हुई जायदाद है, उस सबकी देख-भाल इन मुंशीजीपर है। मुंशीजी बड़े कर्म-ज्यस्त और संक्षिप्त शब्दोंके आदमी है। विनयशील बहुत है, बहुत लिहाज रखते हैं। पर कर्तव्यके समय तत्पर हैं। ___ मुंशीजीने कहा- मुझे माफ कीजिएगा । ओः, मैने हर्ज किया ! पर हाँ,-वह, यह तीसरा महीना है। आप चेक कब भिजवा दीजिएगा ? रायसाहब कहते थे
बात यह है कि पिछले दो माहका किराया मैंने नहीं दिया । दिया क्या नहीं, दे नहीं पाया। मैने मुंशीजीकी ओर देखा । मुझे यह अनुग्रह कष्टकर हुआ कि मुंशीजी अब भी अपनी विनम्रता और विनयशीलताको अपने काबूमें किये हुए है । वह धमकाकर भी तो कह सकते है कि लाइए साहब, किराया दीजिए। यह क्या अधिक अनुकूल न हो।
यह सोचता हुआ मैं फिर अपने सामने मेजपर लिखे जाते हुए कागजोंको देखने लगा। मुंशीजीने कहा- मेरे लिए क्या हुकुम है !
पर मेरी समझमें न आया कि उनके लिए क्या हुक्म हो । अगर (मैंने सोचा ) इनकी जगह खुद (रायसाहब ) महेश्वरजी होते, तो उनसे कहता कि किरायेकी बात तो फिर पीछे देखिएगा, इस समय तो आइए सुनिए कि मैने इस लेखमें क्या लिखा है। महेश्वरजीको साहित्यमें रस है और वह विचारवान् है, विचारवानसे आशय यह नहीं कि किराया लेना उन्हे छोड़ देना चाहिए । अभिप्राय यह, कि वह अवश्य ऐसे व्यक्ति है कि किरायेकी-सी छोटी बातोंको पीछे रखकर
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