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उपयोगिता
कथन शिथिल दृष्टिकोणका है। अतः यह कथन पक्ष सत्य ही है। ऊँचे उठकर उसकी सचाई चुक जाती है और वह असत्य हो सकता है । हमारे लौकिक ज्ञान-विज्ञान - शास्त्र जबतक इस 'युटिलिटी' ( = उपयोगिता ) की धारणापर खड़े है तबतक मानना चाहिए कि वे ढहकर गिर भी सकते है । उनकी नींव गहरी नहीं गई । वे शास्त्र अभी सामयिक है और शाश्वतका उनको आधार नही है ।
पानी हमारे पीनेके लिए बना है, यह कहना पानीकी अपनी सचाईको बहुत परिमित कर देना है। इसका अर्थ यह है कि जबतक मुझे प्यास न हो तबतक पानी निरर्थक है । अपनी प्यासके द्वारा ही यदि हम पानीको ग्रहण करते हैं तो हम पानीको नही पाते, सिर्फ अपनी प्यास बुझाते है ।
पानीकी यथार्थता तक पहुँचनेके लिए यह आवश्यक है कि हम अपनी प्यास बुझानेकी लालसा और ग़रज़की आँखोंसे पानीको न देखें, उससे कुछ ऊँचा नाता पानीके साथ स्थापित करे ।
जिसने पानीके संबंध में किसी नवीन सचाईका आविष्कार किया, जिसने उस पानीको अधिक उपलब्ध किया और कराया, वह व्यक्ति प्यासा न रहा होगा । पानीके साथ उसका संबंध अधिक आत्मीय और स्नेह - स्निग्ध रहा होगा । वह पानीका ठेकेदार न होगा । वह उसका साधक और शोधक रहा होगा ।
जिस व्यक्तिने जाना और बताया कि पानी H2O ( = दो भाग हाइड्रोजन, एक भाग आक्सीजन ) है उसने हमसे ज्यादा पानीकी उस सचाईको प्राप्त किया है । यहकह कर और यहीं
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